चकिया : भगवान राम के लिए भरत का प्रेम निष्कलुष और पवित्र है मुकेश आनंद जी महाराज जागृति सेवा समिति सिकंदरपुर हनुमान जी मंदिर प्रांगण में आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा श्री मुकेश आनंद जी महाराज ने बताया कि रामचरितमानस में भरत का प्रेम भगवान राम के लिए निष्कलुष और पवित्र है।
भरत की निष्ठा पर तो स्वयं देवी सरस्वती को भी गर्व था महारानी कैकेई के मन-मस्तिष्क पर दासी मंथरा के कूटनीतिक वचन का प्रभाव इतना प्रभावित कर चुका था कि माता कैकेई और राम के प्रति उपजे समस्त स्नेह से एकबार मानो विस्मृत हो चुकी थी। लेकिन मंथरा ने इतना ज्यादा भर दिया था कि उनकी अंत: चेतना पुत्र के मोह से ग्रसित होकर सिर्फ यही कह रहा था कि अयोध्या के राज्य का राज्याधिकारी तो भरत को ही प्राप्त होना चाहिए।
पुत्र के खातिर उनके हृदय में वेदना की असीम धारा फूट पड़ती है और उन्हें सांसारिक छ्ल का आश्रय लेकर कोप भवन में जाना पड़ा और महाराज दशरथ के द्वारा पूर्व में दिए गए दो वरदानों को इस मौके पर मांग कर पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और श्रीराम के लिए चौदह वर्ष का वनवास ताकि भरत के मार्ग में कोई अवरोध ना रह जाए और वो अयोध्या के शासन में सम्राट के तौर पर अपनी भूमिका सिद्ध कर लें।
महाराज दशरथ भी इस षड्यंत्र से सिहर उठते हैं क्यों कि एक बार महारानी ने अपने सिद्ध पराक्रम के दम पर उन्हें प्रसन्न कर जिन दो वचनों को भविष्य के लिए रक्षित कर रखा था, उसकी आशंका महाराज को स्वप्न में भी नहीं हो सकती थी कि रानी इस तरह से अपने वचनों की मांग करेगी। और आखिर में राजा दशरथ को राम को बन में भेज कर पुत्र वियोग में प्राण को छोड़ना पड़ता है।
रामचरितमानस में भरत की भूमिका एक आदर्श भाई, और धर्मनिष्ठ त्याग की मूर्ति के रूप में दर्शाई गई है। उन्होंने राम के वनवास के दौरान अयोध्या की रक्षा की और राम की चरण पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर राम के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई। रामायण के अनुसार, भरत को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है, जबकि शत्रुघ्न को भगवान विष्णु के शंख (पाञ्चजन्य) का अवतार बताया गया है।
रिपोर्ट – अनिल द्विवेदी